Navgrah Shanti Stotra in Sanskrit (નવગ્રહ શાંતિ સ્તોત્ર)

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Navgrah Shanti Stotra in Sanskrit (નવગ્રહ શાંતિ સ્તોત્ર)

**Navgrah Shanti Stotra Sasnkrit & Hindi : **पंचम श्रुत केवली आचार्य ** श्री भद्रबाहु स्वामी** द्वारा संस्कृत रचित एवं आर्यिका श्री 105** चंदनामती माता** जी द्वारा हिंदी भाषा रचित नवग्रह शांति स्तोत्र ( 24 तीर्थंकरों की आराधना से ) 9 ग्रहों से शांति प्रदान करने में सहायक है।

जगद्गुरुं नमस्कृत्यं, श्रुत्वा सद्गुरुभाषितम् |
ग्रहशांतिं प्रवचयामि, लोकानां सुखहेतवे ||

जिनेन्द्रा: खेचरा ज्ञेया, पूजनीया विधिक्रमात् |
पुष्पै- र्विलेपनै – र्धूपै – र्नैवेद्यैस्तुष्टि – हेतवे ||

पद्मप्रभस्य मार्तण्डश्चंद्रश्चंद्रप्रभस्य च |
वासुपूज्यस्य भूपुत्रो, बुधश्चाष्टजिनेशिनाम् ||

विमलानंत धर्मेश, शांति-कुंथु-अरह-नमि |
वर्द्धमानजिनेन्द्राणां, पादपद्मं बुधो नमेत् ||

ऋषभाजितसुपाश्र्वा: साभिनंदनशीतलौ |
सुमति: संभवस्वामी, श्रेयांसेषु बृहस्पति: ||

सुविधि: कथित: शुक्रे, सुव्रतश्च शनैश्चरे |
नेमिनाथो भवेद्राहो: केतु: श्रीमल्लिपार्श्वयो: ||

जन्मलग्नं च राशिं च, यदि पीडयंति खेचरा: |
तदा संपूजयेद् धीमान्-खेचरान् सह तान् जिनान् ||

आदित्य सोम मंगल, बुध गुरु शुक्रे शनि:।
राहुकेतु मेरवाग्रे या, जिनपूजाविधायक:।।

जिनान् नमोग्नतयो हि, ग्रहाणां तुष्टिहेतवे |
नमस्कारशतं भक्त्या, जपेदष्टोतरं शतं ||

भद्रबाहुगुरुर्वाग्मी, पंचम: श्रुतकेवली |
विद्याप्रसादत: पूर्ण ग्रहशांतिविधि: कृता ||

य: पठेत् प्रातरुत्थाय, शुचिर्भूत्वा समाहित: |
विपत्तितो भवेच्छांति: क्षेमं तस्य पदे पदे ||

|| Navgrah Shanti Stotra संस्कृत सम्पूर्णम ||

(प्रात:काल इस स्तोत्र का पाठ करने से क्रूरग्रह अपना असर नहीं करते। किसी ग्रह
के असर होने पर 27 दिन तक प्रति दिन 21 बार पाठ करने से अवश्य शांति होगी।)

त्रैलोक्यगुरु तीर्थंकर-प्रभु को, श्रद्धायुत मैं नमन करूँ |
सत्गुरु के द्वारा प्रतिभासित जिनवर वाणी को श्रवण करूँ ||
भवदु:ख से दु:खी प्राणियों को सुख प्राप्त कराने हेतु कहूँ |
कर्मोदयवश संग लगे हुए ग्रह-शांति हेतु जिनवचन कहूँ ||१||

नभ में सूरज-चंदा ग्रह के मंदिर में जो जिनबिम्ब अधर |
निज तुष्टि हेतु उनकी पूजा मैं करूँ पूर्णविधि से रुचिधर ||
चंदन लेपन पुष्पांजलि कर सुन्दर नैवेद्य बना करके |
अर्चना करूँ श्री जिनवर की मलयगिरि धूप जला करके ||२||

ग्रह सूर्य-अरिष्ट-निवारक श्री पद्मप्रभ स्वामी को वंदूँ |
श्री चंद्र भौम ग्रह शांति हेतु चंद्रप्रभ वासुपूज्य वंदूँ ||
बुध ग्रह से होने वाले कष्ट निवारक विमल-अनंत जिनम् |
श्री धर्म शांति कुंथु अर नमि, सन्मति प्रभु को भी करूँ नमन ||३||

प्रभु ऋषभ अजित जिनवरसुपार्श्व अभिनंदन शीतल सुमतिनाथ |
गुरु-ग्रह की शांति करें संभव-श्रेयांस जिनेश्वर सभी आठ ||
श्री शुक्र-अरिष्ट-निवारक भगवन् पुष्पदंत जाने जाते |
शनिग्रह की शांति में हेतु मुनिसुव्रत जिन माने जाते ||4||

श्री नेमिनाथ तीर्थंकर प्रभु राहु ग्रह की शांति करते |
प्रभु मल्लि पार्श्व जिनवर दोनों केतू ग्रह की बाधा हरते ||
ये वर्तमान कालिक चौबिस तीर्थंकर सब सुख देते हैं |
आधि-व्याधि का क्षय करके ग्रह की शांति कर देते हैं ||5||

आकाश-गमनवाले ये ग्रह यदि पीड़ित किसी को करते हैं |
प्राणी की जन्मलग्न एवं राशि संग यह ग्रह रहते हैं ||
तब बुद्धिमान जन तत्सम्बंधित ग्रह स्वामी को भजते हैं |
जिस ग्रह के नाशक जो जिनवर उन मंत्रों को जपते हैं ||६||

इस युग के पंचम श्रुतकेवलि श्रीभद्रबाहु मुनिराज हुए |
वे गुरु इस नवग्रह-शांति की विधि बतलाने में प्रमुख हुए ||
जो प्रात: उठकर हो पवित्र तन मन से यह स्तुति पढ़ते |
वे पद-पद पर आनेवाली आपत्ति हरें शांति लभते ||७||

(दोहा)

नवग्रह शांति के लिए, नमूँ जिनेश्वर पाद |
तभी** ‘चंदना’** क्षेम सुख, का मिलता साम्राज्य ||८||

|| Navgrah Shanti Stotra हिंदी सम्पूर्णम ||

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